बच्चों का स्कूल ना आना और अधिकारियो का लग्गी से पानी पिलाना।
बेसिक शिक्षा विभाग के द्वारा
बेवजह शिक्षा व mdm गुणवत्ता के बहाने शिक्षकों को परेशान करने, निलंबित करने, वेतन रोकने के लिए सैकड़ो विभाग लगाए और नित नये तरीके अपनाये जा रहे।
यदि शासन द्वारा बच्चों को निपुण बनाने के लिए कसम खिलाने से लेकर टीचर्स के वेतन काटने तक हर हथकंडे उपाय अपना लिए हो तो . अब जरा एक बार बच्चे के स्कूल ना आने पर या नियमित ना आने पर, यदि टीचर्स के वेतन रोकने के बजाय अभिभावक के राशन या कोई सुविधा रोकने का प्रावधान हो जाता तो बच्चे भी आ जाते और अभिभावक भी जागरूक हो जाता. इसमें टीचर्स अधिकारी शासन और अभिभावक का किसी का भी कोई नुकसान भी नहीं होगा और काम भी आसान हो जायेगा।
माना की माता पिता की जिम्मेदारी के बच्चे पैदा करने की है, उसके बाद दवा पढ़ाई शादी नौकरी कफ़न तक सब जिम्मेदारी शासन सरकार की है तब भी
कम से कम बच्चों को स्कूल भेजनें की जिम्मेदारी तो अभिभावक की होनी चाहिए।
शायद यही से कुछ सुधार हो जाय
बाकी कई टीचर्स के द्वारा बच्चों को दया या पुरस्कार स्वरुप कॉपी पेन देने, अभिभावक को जागरूक करने बुलावा टोली बनाने फोन लगाने बात बात पर बच्चों से रैली निकलवाने कसम खिलाने जैसे अभियान से कुछ होने वाला नहीं क्योंकि ज़ब टीचर्स स्कूल में पढ़ने आये बैठे हुए बच्चों को पढ़ाने के बजाय रैली निकालने फोटो खींचने और ना पढ़ने वाले बच्चों को खेत खेत बुलाने जायगा तो खेत में खेल रहा बच्चा मजबूरन निपुण भी कागज पर ही होगा और वास्तविक पढ़ने वाले बच्चे भी नहीं पढ़ पाते. फिर वो जागरूक अभिभावक और बच्चे भी टीचर्स को ही कोसते है.
लग्गी से पानी पिलाने से पीने और पिलाने वाला दोनों परेशान होगा और पानी भी बर्बाद हो रहा.
दूसरे जो mdm, विभिन्न सर्वे, टीकाकरण,भवन निर्माण, सफाई कर्मी का काम, दूसरे विभागों, मेला, रैली, शादी मे साड़ी पहनाने रोड लाइट उठाने , परीक्षा में कालेजों मे ड्यूटी जैसे कार्य है ये जिनका है उनको ही करने दें। दूसरे विभाग अपनें काम टीचर्स पर थोप देते, फिर वही शिक्षा गुणवत्ता भी जांचने आते भले ही उनका विभाग धांधली से भरा हो.
शासन केवल ये काम करें
1 बच्चों को विद्यालय भेजनें की जिम्मेदारी और न भेजनें की सजा अभिभावकों को दें.
2 तमाम गैर शैक्षणिक कार्य जिस विभाग का है उसी विभाग के कर्मचारी को करने दें।
3 हर हफ्ते mr की तरह नई दवाई जैसे शिक्षा में भी हर दिन प्रयोग ना करें, क्योंकि 50 शिक्षाविद 500 स्किम लें आते तो टीचर्स भी हताश होते.
इनसे भी
काफ़ी समस्या अपनें आप सही हो जायगी.
कृपया
कोई संघटन, अधिकारी, ngo, arp, नेता, या जो भी सक्षम हो यदि संभव हो सके तो ऊपर तक ये भी बात समस्या पहुंचाई जाय. क्योंकि दर्द रोगी के दाँत में है और सर्जन आतें नर्स की काटे दे रहे। तो इलाज भला कैसे होगा. नर्स भी रोगी को दवाई देने के बजाय सर्जन से अपनी आंत बचाने में लगे रहेंगे.
बाल गोविन्द द्विवेदी