यूपी बेसिक डिजिटल अवकाश तालिका-2024

परीषदीय विद्यालय मे कम नामांकन की समस्या



परीषदीय विद्यालय मे कम नामांकन कारण व निवारण 


 परीषदीय विद्यालय मे नामांकन कम होने का कारण अकेले प्राइवेट विद्यालय और सरकारी शिक्षक ही दोषी नहीं है।

बेसिक मे इतने प्रयोग किए जा रहे कि जिनके पास बच्चो को पढाने के लिए पैसा और जागरूकता है वो अभिभावक जहां बेहतर पढाई होगी वहीं जाएगें।



 बेसिक में बच्चो को पढाने के लिए टीचर्स से ज्यादा विभिन्न प्रकार के अधिकारी नियुक्त है। जो हर बार नया तरीका ले आते है कि बच्चो को कैसे पढाया जाय। और समाधान के बजाय केवल भ्रम और समस्या ही पैदा करते है।


जहाँ प्राइवेट स्कूल्स मे केवल पढ़ने वाले बच्चे और पढ़ाने वाले टीचर्स रहते है ।
वहीं बेसिक में जो नही पढना चाहता उनको पढाना है और जो पढना चाहते है उन बच्चो को तब तक नही पढाना है जब ना पढने वाले बच्चे के लेबल मे पढने वाला बच्चा ना आ जाय यानी फर्राटे से पाठ पढने और कठिन से कठिन सवाल को हल कर लेने वाला बच्चा जबतक  
 सौ तक गिनती भी लिखना ना भूल जाए तब तक उसको पढाना नही है क्योकि उस पढने वाले बच्चे को भी कंचा खेलने वाले बच्चो के स्तर तक लाकर बराबर करना ही शिक्षा का उद्देश्य रह गया है। 

  प्राइवेट मे सबका काम निर्धारित है प्रिंसिपल मानीटरिंग करेगे मैनेजर व्यवस्था करेगे, लिपिक आय व्यय का काम करेगे, सफाई कर्मी सफाई करेगे टीचर्स पढाएगे, बच्चे पढ़ेंगे अभिभावक बच्चे पर ध्यान देगा।

प्राइवेट के बच्चे जब कक्षा मे पढ रहे होते है तो परीषद का बच्चा कभी मतदाता जागरुकता की तख्तिया लिए रैली मे नारे लगाता है और शपथ ले रहा होता है तो कभी संचारी रोग पोलियो आदि के रैली निकाल रहा होता है।

प्राइवेट के बच्चे का ड्रेस हर विषय की किताब और नोटबुक साथ लेकर स्कूल मे आता है तो परीषदीय बच्चो के अभिभावक अक्सर काॅपी पेन तक नही खरीद कर देते। वो भी कभी कभी टीचर्स ही देते है


बेसिक में टीचर्स पढाई छोड़कर सारे काम जैसे सफाई करना सिलेंडर राशन ढोना भोजन बनाना सर्वे करना विभिन्न विभागो के कार्य व डाटा फीडिंग करना मीटिंग करना स्कूल टाइम मे आनलाइन मीटिंग करना शौचालय बनवाना सफाई करवाना भवन हैण्डवाश बिजली वायरिंग करना आदि सब काम हेडमास्टर के जिम्मे है  

जहाँ प्राइवेट स्कूल्स मे हर कक्षा या विषय के लिए एक शिक्षक नियत होता है तो अधिकांश बेसिक स्कूलो मे टीचर्स कम है। एक दो ही टीचर सभी कक्षा और विषय को एक ही कालांश मे पढाते है वो भी विभाग के अन्य कार्य करने के साथ साथ 
 हजार कामो के बाद पढाने की जिम्मेदारी और लक्ष्य तय है लेकिन अधिकारी वहां पर्याप्त टीचर्स नहीं उपलब्ध करा पा रहे।

प्राइवेट मे अभिभावक स्कूल मे केवल फीस जमा करने और कभी कभार बच्चे के पढाई से संबंधित समस्या के समय ही जाता है अदब से । बेसिक के अभिभावक पढाई छोड़कर वजीफा नही आया ड्रेस नही आया जैसे कामो मे सीधे कक्षा मे घुस आता लड़ने के लिए।और जब कोई अभिभावक अगर टीचर्स से लड़ बैठे तो उस अभिभावक का बच्चा तो फिर कायदे से निपुण हो ही जाता है लेकिन उसकी खुन्नस कभी कभी फिर ऐसे ही अन्य अभिभावक के बच्चो पर भी निकलती है।

  प्राइवेट के टीचर्स का प्रिंसिपल का एक दूसरे से सामंजस्य रहता है भले ही डर के कारण या व्यवस्था के कारण। बेसिक के अधिकांश स्कूलो मे हेडमास्टर सहायक से अगर कह दें कि ये काम है इसे करना है तो सहायक उसे तो नही करेगा भले ही पृथ्वी पलट जाए और जो कभी सहायक हेडमास्टर से कह दे कि चाक डस्टर खत्म है ले आ दें तो मजाल है कि महीने भर मे चाक आ जाए। कभी सहायक गोला मार दे और हेड डरते डरते कह दे कि बंधु/ मैडम समय से आ जाइए तो इगो को ठेस लग जाती है। अधिकांश स्कूलो मे हाथापाई वाली लड़ाई अक्सर पेपर मे आती ही रहती है।

समस्या शिक्षा के विभिन्न प्रयोगो विधाओ मे नही है क्योकि बड़े लिखेपढ़े शिक्षाविद ये सब प्रयोग करते है तो इसे सही ही माना जाना चाहिए बल्कि समस्या व्यवस्थापको के नित नये प्रयोग और शिक्षक के लिए शिक्षण के अलावा सैकड़ो शिक्षणेतर कार्यो को करने की बाध्यता से उत्पन्न हो रही। 

अधिकांश अभिभावक भी जब ड्रेस का पैसा सीधे खाते मे डीबीटी 
के माध्यम से मिल रहा तो वो बच्चे के क्यो ड्रेस खरीदे लेकिन पैसा अभिभावक के खाते मे ड्रेस पहनाने की जिम्मेदारी टीचर्स की।
बिना पढ़े, परीक्षा दिए ही जब जबरन प्रमोट या पास किया जाएगा तो बच्चा क्यो ही पढ़े भला। 


अधिकांश अभिभावक अशिक्षित और गरीब है उनको पढाने के बजाय बच्चो से दस बीस रूपये मे गन्ने छीलने महुआ बीनने खेती करवाकर सौ दो सौ रूपये मिल जाने मे ज्यादा प्रत्यक्ष लाभ और संतोष दिखता है तो वो क्यो पढाए। पढाई की चिंता नही राशन तो शासन दे ही रही फ्री मे तो भोजन की भी चिंता नही।
     उनका तो मानना ही है कि करना तो मजदूरी ही है। तो अभी से क्यो ना कराएं। इसलिए वो या तो खेतो मे काम कराते या नाम लिखाने के बाद बच्चे के साथ दिल्ली जैसे शहरो मे काम करने के लिए चले जाते।


जबरन नामांकन करने की बाध्यता फिर आधार ना होने और डीबीटी ना होने पर अभिभावक अधिकारियो बैंक कर्मियो के बजाय टीचर्स की जिम्मेदारी। 

नाम लिखाने के बाद बच्चे को ना भेजना या कही और भेजना अभिभावक का ईच्छा और अधिकार और नाम काटने पर नामांकन कम होने पर शिक्षक जिम्मेदार । 

दिक्कत केवल एक आधे इंच के कीड़े लगे दाँत में है लेकिन यूक्रेन युगांडा से पढ के आए अनेक सर्जन गले से लेकर गुदा तक दस फीट का आँत ही चीरे डाल रहे और दोष नर्स को दे रहे कि इतना सेटअप डेकोरेशन और काटापीटी करने के बजाय मरीज के दिल का दर्द ठीक क्यो नही हो रहा।
अब बेचारी नर्स उस लिखे पढे सर्जन को कैसे समझाए की मरीज को तो दाँत का दर्द है , आप दवा दिल का दे रहे और चीर फाड़ आँत का कर दिए है। प्रभु इसे सर्जरी नही पोस्टमार्टम कहा जाता है।



इसलिए 

टीचर्स को प्रताड़ित करने के बजाय 
सीधा सीधा एक नियम बनाए की वे अभिभावक की जिम्मेदारी हो कि जिसका बच्चा पढने लायक हो गया हो उसका नामांकन विद्यालय मे करवाया जाए और उनको स्कूल भेजा जाए वरना राशन या जो सुविधा मिलती है रोक दी जाएगी। अगले दिन से कक्षाएं भर जाएगी। 


 टीचर्स से विभिन्न शिक्षणेतर कामो को कराने और जिम्मेदार बनाने के बजाय केवल पढाई पर ही ध्यान देने दिया जाए तो टीचर्स के पास बहाना ना रहेगा।

अधिकारियो को भी चेकिंग के नाम पर केवल टीचर्स पर कार्यवाही और उगाही करने के बजाय स्कूल के लिए जो संभव भौतिक व्यवस्था हो उसपर भी कार्य करना चाहिए।

विभिन्न जननेता, समाज सेवी, मीडिया कर्मियों की भी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वो अपने सेवित क्षेत्र की जनता से उनकी मूलभूत समस्याओ को जाने और उसे यथा संभव दूर करने का प्रयास करें और अभिभावको से बच्चो के स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करें।

तब कदाचित् कुछ सकारात्मक परिणाम आ भी सके।
                                   
                                   बालगोविन्द द्विवेदी


 





 

  




Post a Comment

0 Comments